Monday, 20 April 2015

"Boys school के लड़कों का प्यार"
प्यार तो भाई सबको होता है। ब्वाॅय्ज स्कूल के लको को भी प्रेम होता है।
चाहे तीन साल पुराना, सीनियर द्वारा 'यूज्ड' डेवोनेयर हो, काॅस्मोपाॅलिटन, मनोहर कहानियाँ या सर्वव्याप्त, सर्व-विद्यमान, सर्वसुलभ परंतु अदृश्य मस्तराम की किताबें, ब्वाॅय्ज स्कूल के लडकें प्रेम और सेक्स दोनों का पहला अध्याय इन्हीं 'किताबों' से सीखते हैं। कुछ का ज्ञान तो सरस सलिल के किशोरों की समस्याएँ पर ही निर्भर रहती हैं ।  मैं अठारह वर्ष का एक किशोर हूँ और मुझे एक ख़राब आदत लग गई है... (जानकार लडकों को पता होगा कि ये ख़राब आदत क्या है!)
मुझे याद है जब हमारे सीनियर विजय जी बारहवीं में फ़ेयरवेल के बाद अपना कमरा ख़ाली कर रहे थे तो मुझे एक डेवोनेयर दिया था हमारे काम से ख़ुश होकर। हम विजय जी के जूनियर थे मतलब उनका बेड लगाना, पानी लाना, बैग में उस दिन की किताबें डालना, बैग को उनकी क्लास में रखना, चाय लाना इत्यादि हमारे ज़िम्मे था। हर सीनियर का जूनियर असाईन्ड होता था। हम भी जब सीनियर हुए तो हमें भी ये सुविधाएँ मिलीं। और हमने भी कुछ 'किताबें' अपने ख़ास जूनियर को दे दीं।
ये प्रचलन हर हाॅस्टल का है क्योंकि कोई भी नहीं चाहेगा कि सात साल भारत के एक बहुत अच्छे मिलिट्री स्कूल से पढ़कर लड़का घर जाए सारा सामान लेकर और माँ को बक्से से चित्रों वाली किताब मिले। थोड़ा अन्कम्फर्टेबल हो जाएगा।
हाॅस्टल में रह चुके बाप तो मान भी जाएँ पर माताएँ सीरियस हो जाती हैं कि लड़का बिगड़ गया। मिडिल क्लास माताएँ फ़ोटो देखकर ही बिगड़ जाती हैं चाहे कितना भी समझा लो, "माँ, वो तो लाँज़री का ऐड है...” "आग लगे ऐसी करमजली की देह में! यही सब कर रहे थे इतने दिन?" मानो साला हम उस माॅडल के साथ क्लास करने जाते हों और वो हमें भगा ले जाती हो।
इन मौक़े पर हमारी मिडिल क्लास माँएँ ये भूल जाती है कि उसके इसी नालायक लड़के ने डिस्ट्रिक्ट में टाॅप किया था और बारहवीं के रिज़ल्ट आने से पहले एनडीए क्लीयर कर चुका है।
ख़ैर जो भी हो। हर ब्वाॅय्ज स्कूल के लड़के को दयालु परमपिता परमेश्वर एक मौक़ा और देता है प्रेम करने का। लड़का काॅलेज़ में एडमिशन लेता है। वो ये सोचता है कि काॅलेज़ में शाहरूख खान टाईप कोई फ़्रेंडशिप बैंड बाँट रहा होगा। लेकिन ऐसा नहीं पाकर उसका मोहभंग होता है कि साला यहाँ भी पढ़ाई हो रही है, गाने तो कोई नहीं गाता।
दिल का साफ़ और बहुत ही फट्टू टाईप ये बेचारा लड़का क्लास आता है और जाता है। दिल ही दिल में रोज़ एक गर्लफ़्रेंड बनाता है, दिल ही में डेट पर जाता है, किस करता है, बच्चे पैदा करता है... ये लडकें अपने जैसे नामुरादों को खोज लेते हैं और डिसकस कर लेते हैं कि कौन लड़की किसकी है।
सबकुछ म्यूचुअली डिसाईड हो जाता है। लड़की को कुछ पता नहीं और यहाँ मारापीटी हो जाती है कि तू कल पीली वाली पर लाईन मार रहा था। लड़की की अलग समस्या है, जानती है लडका टाॅपर है, बोलता अच्छा है, काॅन्फिडेंस है, आर्टिस्ट है, लंबा है, स्मार्ट है लेकिन पता नहीं किस दादी माँ ने उससे कहा होता है कि तू प्रपोज़ करेगी तो तेरी इज़्ज़त चली जाएगी। लड़का तो फट्टू है, तुम क्यूँ राष्ट्रपति वाला प्रोटोकाॅल लिए चल रही हो?
कितने लोग ग्रेजुएशन का तीन साल इसी उम्मीद में निकाल देते हैं और एक दिन फ़ेसबुक पर पता चलता है, ले साला! शादी हो गई उसकी! और लड़के की शक्ल और प्रोफ़ाईल देख कर वो बोलता है, "साला हम कौन से बुरे थे! बताओ यार, इस लडके के पर  सोने  के पर लगे हैं क्या? पता नहीं सुंदर लड़कियों को चिरकुट लडकों में क्या इंटेरेस्ट होता है!"
ब्वाॅय्ज स्कूल के भोले लड़के इतने भोले होते हैं कि अगर उन्हें फ़ेसबुक पर फ़्रेंड सजेशन में भी कोई लड़की दिखती है तो सोचते हैं कि क़ायनात कोई साज़िश कर रही है। उन्हें लगता है कि लड़की से रहा नहीं गया और उसने फ़ेसबुक को पैसे देकर उनकी टाईमलाईन पर अपना प्रोफाईल सजेस्ट कराया हो।
थिंकिंग का क्या है। आपको आईडिया नहीं है हमारे जैसे कमज़ोर दिल वाले ब्वाॅय्ज स्कूल के डरपोक प्रेमियों का। हम तो कुछ भी सोचते हैं क्योंकि हमारे तीन दोस्त, जिनकी शादी की ज़िम्मेदारी उनके माँ-बाप को दे रखी होती है, वो हमेशा ध्वनि मत से पारित कर देते हैं कि सही सोच रहे हो, यही बात होगी।
ऐसे दोस्त हों तो हमें भी अपने पापा पर ही शादी का ज़िम्मा डालना पड़े। लेकिन हम एक साल की झिझक से समझ गए कि भैया ऐसे काम नहीं होता। लड़की ख़ुद नहीं बोलेंगी, तुम इंडिकेटर आॅन करो। टाॅपर होगे घर में! तब जाकर काॅमन फ़्रेंड के ज़रिये प्रपोज़ करवाया हमने। उसके बाद तो हमने जो जो किया वो ब्वाॅय्ज स्कूल के लड़कों के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।
बात हमारी नहीं है। बात है उन तमाम लड़कों की जो प्यार दिल ही में करते हैं, लेकिन करते हैं। उनका अनोखा, अलबेला प्रेम होता है। इनका प्रेम हर मौक़े (अधिकतर तो बेमौके) निकलता है।
एक बात ग़ौरतलब की ये है कि ये अपने दोस्तों के, जो सफल हैं गर्लफ़्रेंड के मामले में, प्यार में पूरा यूनाईटेड सपोर्ट देतें हैं। खुद साले कभी डेट पर गए नहीं लेकिन तमाम फ़िल्मों का रेफरेंस देकर बताएँगे कि कौन सी ड्रेस सही रहेगी और पहली लाईन क्या बोलना है, दरवाज़ा कैसे खोलना है उसके लिए मानो साला डेट पर नहीं मिस वर्ल्ड के फाईनल राउंड में जा रहे हों और देश की इज़्ज़त का सवाल हो!
प्रेम आपका है पर कर सब रहे हैं। काॅफी पर आपको जाना है और आधा बैच, जिस जिस को ख़बर मिल गई, चिंतित है कि कब जाएगा, गया या नहीं, उस लड़की से कौन बैचमेट मिल चुका है, फ़ेसबुक पर किस नाम से है, आठ फ़ोटो लाईक कर देगा तब तक...
आप सोच नहीं सकते हैं कि इमोशनल होकर ये लड़कें , इनोसेंस में क्या क्या कर देते हैं। लड़की ने मान लो लिख दिया कि 'आई एम इन लव विथ दिस मेन -----' और आपको टैग कर दिया तो वो ये नहीं सोचते कि क्यों लिखा है, उसकी कोई बात पसंद आ गई होगी, या सायद उसकी बात पसंद आ गई होगी ...
लेकिन नहीं, ये भोले हरामखोर दोस्त उसको 'भाभी' मान लेते हैं और फिर फ़ोन कर कर के बैंगलोर, अहमदाबाद, भुवनेश्वर, दिल्ली और बाकी जगहों से बाकी बैचमेट्स को ख़बर कर देते हैं कि फ़ेसबुक पर ऐसा 'कांड' हो गया, 'अपना' लड़का काॅफी पीने जा रहा है! पूरा बैच ख़ुश! कुछ तो साले पार्टी माँगने लगते हैं। बताईए भला, ऐसे आदमी ट्रीट देने लगे तो पूरा पॉकेट मनी पैसा तो इसी में जाए। और सामने वाली लड़की को क्या खिलाएगा।  
ख़ैर, हाॅस्टल में सात साल साथ गुज़ारने पर फीलिंग एक जैसी हो जाती है। कम्बख़्त ख़ुश भी तो हमारे लिए ही होते हैं। उन्हें लगता है कि कोई तो गया, किसी ने तो कुछ किया लाईफ़ में मानो नोबेल प्राइज ले लिया हो। 
अब आप बताईए जिस लड़के को टेबल पर रखी पानी की बोतल माँगने में झिझक होती हो कि लड़की क्या सोचेगी कि लाईन मार रहा है बोतल माँगने के बहाने, क्या इज़्ज़त रह जाएगी मेरी, वो बेचारा क्या करेगा और कैसे करेगा!
इन पर फिर पढ़ाकू होने का ठप्पा लग जाता है। जो लड़का पैंसठ परसेंट पाकर किसी तरह पास होता हो बारहवीं तक वो अचानक फ़र्स्ट इयर का टाॅपर हो जाता है क्योंकि उसके पास पढ़ने के अलावा कोई काम ही नहीं होता। फिर उसे और पढ़ाकू मानकर लोग साईड कर देते हैं और फिर वो सरकमफरेंस पर आकर टेंजेशियली देखता रहता है कि सेंटर में क्या चल रहा है।
मेरी तमाम लड़कियों से गुज़ारिश है कि इन्हें मेनस्ट्रीम में लाएँ। ये लोग दिल के बहुत साफ़ होते हैं। बहुत ही लाॅयल होते हैं, डेडिकेटेड लवर होते हैं और इतना प्रेम करते हैं कि कभी कभी आप सफोकेटेड फ़ील करने लगोगे। ये कूल डूड में कुछ नहीं है। ब्वाॅय्ज स्कूल के वर्जिन लड़कों पर भी ध्यान दीजीए, वो आपको निराश नहीं करेंगे।

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